Liver Diseases

लिवर की बीमारी किसी भी ऐसी स्थिति को कहा जाता है जो यकृत (लिवर) को नुकसान पहुँचाए और उसकी सामान्य कार्यक्षमता को प्रभावित करे। लिवर हमारे शरीर का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है, जो पाचन, विषहरण (डिटॉक्स), चयापचय (मेटाबोलिज़्म) और पोषक तत्वों के भंडारण में प्रमुख भूमिका निभाता है। जब यह अंग सूजन, संक्रमण, स्कार टिशू (fibrosis), या विषैले तत्वों से प्रभावित होता है, तो यह कई गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है — जिनमें से कुछ बिना किसी लक्षण के भी होती हैं।
लिवर रोगों के सामान्य कारणों में फैटी लिवर, अधिक शराब का सेवन, वायरल हेपेटाइटिस, ऑटोइम्यून रोग और कुछ दवाओं या रसायनों का प्रभाव शामिल है। इसके लक्षणों में थकान, पीलिया, पाचन समस्याएं, और गंभीर मामलों में सिरोसिस या लिवर फेल्योर शामिल हो सकते हैं।
Liver disease refers to any condition that damages the liver and affects its normal functioning. The liver is one of the most vital organs in the body, playing a central role in digestion, detoxification, metabolism, and nutrient storage. When it becomes inflamed, infected, scarred (fibrosis), or affected by toxins, it can lead to several serious health issues — some of which may occur without any noticeable symptoms.
Common causes of liver diseases include fatty liver, excessive alcohol consumption, viral hepatitis, autoimmune disorders, and the effects of certain medications or chemicals. Symptoms may include fatigue, jaundice, digestive problems, and in severe cases, cirrhosis or liver failure.
At Al Kabir Herbs, we approach liver care through Ayurvedic principles — focusing not just on curing the disease but on restoring the body’s overall balance and vitality. Our herbal formulations are natural, gentle, and free from side effects.
अल कबीर हर्ब्स में हम लिवर की देखभाल आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से करते हैं — जहां उपचार केवल बीमारी को ठीक करने तक सीमित नहीं होता, बल्कि पूरे शरीर का संतुलन और जीवनशक्ति लौटाने पर केंद्रित होता है। हमारे हर्बल फॉर्मूलेशन प्राकृतिक होते हैं, जिनमें किसी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं होता।

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यह स्थिति तब होती है जब लिवर की कोशिकाओं में वसा (फैट) जमा हो जाती है। यह शराब के सेवन से (एल्कोहॉलिक फैटी लिवर) या बिना शराब के (नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर – NAFLD) भी हो सकता है। प्रारंभिक अवस्था में कोई लक्षण नहीं होते, लेकिन समय पर इलाज न हो तो सूजन और लिवर को नुकसान हो सकता है।

लिवर की सूजन जो वायरस के कारण होती है:

  • हेपेटाइटिस A और E: संक्रमित पानी या भोजन से फैलते हैं।

  • हेपेटाइटिस B, C और D: संक्रमित रक्त या शारीरिक तरल पदार्थों से फैलते हैं।
    अगर यह पुराना हो जाए तो लिवर फेल्योर या कैंसर हो सकता है।

यह एक गंभीर स्थिति है जिसमें लिवर की स्वस्थ कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होकर फाइब्रोसिस (स्कार टिशू) में बदल जाती हैं, जिससे रक्त का प्रवाह बाधित हो जाता है। यह लंबे समय तक शराब पीने, हेपेटाइटिस या फैटी लिवर के कारण हो सकता है।

लिवर में लंबे समय तक सूजन रहने के कारण स्कार टिशू बनने की शुरुआती अवस्था। यदि समय पर इलाज न हो तो यह सिरोसिस में बदल सकता है।

एक गंभीर स्थिति जिसमें लिवर की कोशिकाएं कैंसरग्रस्त हो जाती हैं। यह आमतौर पर पुराने हेपेटाइटिस B/C या सिरोसिस से जुड़ा होता है। समय रहते पहचान और इलाज जरूरी होता है।

यह एक लक्षण है, रोग नहीं — जिसमें त्वचा और आंखें पीली हो जाती हैं। यह लिवर की खराबी, हेपेटाइटिस, पित्त नली की रुकावट या रक्त कोशिकाओं के टूटने का संकेत हो सकता है।

लिवर में मवाद से भरी हुई गांठ (संधान) जो बैक्टीरिया या अमीबा के संक्रमण से बनती है। इसमें तेज बुखार, दाहिने ऊपरी पेट में दर्द और सूजन हो सकती है।

एक आनुवांशिक रोग जिसमें शरीर में अत्यधिक आयरन जमा हो जाता है, जिससे लिवर को नुकसान होता है। समय पर इलाज न हो तो यह सिरोसिस, डायबिटीज या हार्ट रोग का कारण बन सकता है।

एक दुर्लभ आनुवांशिक स्थिति जिसमें शरीर में कॉपर (तांबा) लिवर, मस्तिष्क और अन्य अंगों में जमा हो जाता है और धीरे-धीरे उन्हें नुकसान पहुँचाता है। यह रोग आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था में शुरू होता है।

एक ऑटोइम्यून रोग जिसमें लिवर की पित्त नलिकाएं धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं, जिससे पित्त लिवर में जमा होकर उसे नुकसान पहुंचाता है।

एक पुरानी बीमारी जिसमें पित्त नलिकाओं में सूजन और स्कार टिशू बन जाता है, जिससे पित्त का बहाव रुक जाता है और लिवर की कोशिकाएं प्रभावित होती हैं।

इस स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली गलती से लिवर की कोशिकाओं पर हमला करती है, जिससे लिवर में सूजन और क्षति होती है।

जब लिवर अपने आवश्यक कार्य जैसे विषहरण, पाचन, और बाइल निर्माण करना बंद कर देता है। यह अचानक (एक्यूट) या धीरे-धीरे (क्रॉनिक) रूप में हो सकता है।

एक हल्का आनुवंशिक विकार जिसमें शरीर में बिलीरुबिन को ठीक से प्रोसेस नहीं किया जाता, जिससे कभी-कभी हल्का पीलिया हो जाता है। यह आमतौर पर हानिरहित होता है और इलाज की आवश्यकता नहीं होती।